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सोमवार, 8 जून 2009

अब ऐतबार के रिश्ते खत्‍म हुए जाते हैं..

अब ऐतबार के रिश्ते खत्‍म हुए जाते हैं,
लोग दगा पे दगा दिए जाते हैं।
किससे निभाएं रिश्तों का मिजाज,
यहां रोज रिश्ते कत्‍ल किए जाते हैं।

हम भरोसे का भरम पालते रहे,
लोगों का खून भी पानी हो गया।
हम हर बात को हंसी में टालते रहे,
यहां हंसना रोना बेमानी हो गया।
अब हंसने वाले को आंख में आंसू दिए जाते है,
अब ऐतबार के रिश्ते खत्‍म हुए जाते हैं।

न कहना अपना किसी को,
न किसी से कोई तार जोड़ना,
न दिल का हाल कहना किसी को,
न सामने किसी के कोई राज उढ़ेलना।
अब दिल की बातों के चर्चे किए जाते हैं,
अब ऐतबार के रिश्ते खत्‍म हुए जाते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. कमाल है रिश्तों पर ही मैंने आज एक ग़ज़ल डाली है और रिश्तों पर ही आपने भी क्या खूब कहा है...बधाई..
    नीरज

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