बस तुम ही तो जिसे देखकर दिल को धड़कना याद आता है
तुम ही तो जिसे छूकर मुझे मेरे होने का अहसास आता है
हां सच में वो तुम ही हो जिसकी आवाज मेरे सांसो की तार है
सच वो तुम ही हो जो मुझमें मुझसे ज्यादा रहता है
मैं तुमसे अलग नहीं हो सकता
क्योंकि फिर मिट जाएगा मेरा खुद का वजूद
मैं, मैं जो नहीं हूं, कब का तुम हो चुका हूं
बस तुम ही तो हो जो मेरे जीवन का आधार है।
अब भला तुम्हें क्या बताऊं तुम क्या हो
गर्मी में तपती जमीं पर पड़ती बारिश की पहली बूंद सी तुम
खून जाने वाली सर्द हवाओं के बीच
एक नर्म आलिंग्न के आनंद सी तुम
बस, तुम और तुम ही हो
जिसके साथ पूरी उम्र बिताना चाहता हूं
मगर, जानता हूं कि यह सिर्फ मेरा इरादा है
तुम्हारा नहीं, तुम्हारे लिए तो मैं सिर्फ एक परिचित भर हूं
एक परिचित , जिसे अपना परिचय ही नहीं मालूम
भारत मल्होत्रा
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वाह, क्या बात है। आपकी बात की बात ही निरालीहै। बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut bahut bahut achchhi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है. तुम का मै होना और मै का तुम हो जाना.
जवाब देंहटाएंबधाई
भाई मेरे अपनी सकारात्मक सोच को और मज़बूत करें और परिचय को परिणय मे बदले की साकार कोशिश करे! क्योंकि जब कोई इतना प्यारा और अपना लगे तो उसे अपने दिल ही हर बात बिना दर के बतानी चाहिए.
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