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बुधवार, 15 जुलाई 2009

बहुत हुआ अब थक चुके हैं..


बहुत हुआ अब थक चुके हैं
सच कहूं तो पक चुके हैं
रोज-रोज की झिक-झिक से
बेकार की खिट-पिट से
वही पुराने कायदों से
झूठे सब उन वायदों से
सच कहूं तो पक चुके हैं
बहुत हुआ अब थक चुके हैं

काम के झूठे बोझ से
बॉस की उस डांट से
बंधती-टूटती आस से
कभी न बुझती प्‍यास से
बनते-बिगड़ते अरमानों से
मीठी छुरी जुबानों से
सच कहूं तो कट चुके हैं
बहुत हुआ अब थक चुके हैं

भारत मल्‍होत्रा

4 टिप्‍पणियां:

  1. इसी उमर में थक गए भारत कैसे आप।
    जीवन तो वरदान है न समझें अभिशाप।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. श्‍यामल जी आपकी टिप्‍पणी के‍ लिए धन्‍यवाद। लेकिन, मैंने यह जीवन के बारे में नहीं अपितु 'कार्बन छाप' दिनचर्या के बारे में कहा है।

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