क्या आप अपने पति के अलावा किसी और से शारीरिक संबंध बनाना चाहेंगी, अगर आपके पति को इसका कभी पता न चले तो] जरा सोचिए और फिर जवाब दीजिए कि कितनी भारतीय औरतें इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देंगी और वो भी टीवी पर। शायद कोई नहीं, फिर चाहे इस सवाल का जवाब के एवज में उसे एक करोड़ रुपए ही क्यों न मिल रहे हों। लेकिन, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि ‘ना’ में जवाब देने पर भी उसे सच ही मान लिया जाए।
स्टार प्लस के नए शो सच का सामना में मुंबई की स्मिता मताई के साथ भी यही हुआ। मुंबई की रहने वाली स्मिता ने अपने बचपन और वैवाहिक जीवन की कई उन मशीनी सच बातों को स्वीकारा जिनके बारे में बात करते हुए उनकी आंखें नम हो गई। लेकिन, इस एक सवाल ने उन्हें झूठा करार दे दिया। उनके 16 साल पुराने वैवाहिक जीवन के विश्वास को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। इससे पहले भी स्मिता से काफी निजी सवाल किए गए थे जैसे- क्या आपने कभी अपने पति को धोखा देने की सोची है, क्या आपके मन में कभी अपने पति की हत्या करने का विचार आया है। क्या आप अपने दूसरे बच्चे के जन्म के दौरान अपनी मां को आपके पास न होने के लिए माफ कर सकती हैं, लेकिन स्मिता ने खुद को इन सवालों की कसौटी पर खुद को साबित किया। लेकिन, इस आखिर सवाल ने न सिर्फ स्मिता के निजी जीवन के रिश्तों पर ही आघात किया, लेकिन साथ ही उनकी जीती सारी रकम भी उनसे छीन ली। इस शो में कमाने आई स्मिता यहां से सब कुछ गंवाकर जा रहीं थी।
लेकिन इस बीच कुछ सवाल मुंह बाहे खड़े हैं- क्या, सच की आड़ लेकर किसी को किसी के भी निजी जीवन के उन पहलुओं को छूने की इजाजत दे दी जानी चाहिए। क्या, टीआरपी की गला काट स्पर्धा के लिए चैनल्स कुछ भी करने को तैयार हैं। क्या सब कुछ जानते बूझते भी इस कार्यक्रम में आने वाले लोग अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं। पॉलीग्रॉफी मशीन कितनी विश्वसनीय है।
अंग्रेजी शो ‘ दि मूवमेंट ऑफ ट्रूथ’ के इस भारतीय अवतार को शुरू होने से पहले ही विवादों का सामना करना पड़ा था। महेश भट्ट, सलिल अंकोला, विक्रम भट्ट जैसी तमाम फिल्मी हस्तियों ने इस शो को निजता में दखल मानकर इस कार्यक्रम में आने से इंकार कर दिया था।
सवाल यह भी उठता है कि अमेरिका और भारतीय दर्शकों के बीच काफी अंतर है। अंतर लोगों की मानसिकता को लेकर है, अंतर आपसी संबंधों की गहराई को लेकर रहे। अंतर सामाजिक ताने बाने को लेकर है। अगर यही सवाल किसी अमेरिकी महिला से पूछा जाता तब शायद इस सवाल को लेकर वहां इतना बवाल नहीं मचता, लेकिन हमारे यहां इस तरह की बातें आज भी सामाजिक परिवेश में वर्जना के क्षेत्र में आती हैं। चैनल निजी जीवन के उन हिस्सों में दाखिल हो रहे हैं, जहां लोग खुद नहीं जाते। लेकिन, बावजूद इसके वहां भी यह कार्यक्रम कई घर तोड़ने का ‘पाप’ कर चुका है।
लेकिन, सिर्फ चैनल्स को जिम्मेदार ठहराना कहां तक ठीक होगा। यहां सवाल यह भी उठता है कि लोगों इस कार्यक्रम में जाने वाले सभी लोग कार्यक्रम के फॉर्मेट से अच्छी तरह वाकिफ हैं। वे उन सवालों से भी वाकिफ हैं जो शो के दौरान उनसे पूछे जाएंगे। तो, फिर सब कुछ जान बूझकर भी वे खुद अपनी मर्जी से ‘सच का सामना’ करने यहां आए हैं। ऐसे में जिम्मेदारी उनकी भी बनती है... सिर्फ चैनल को दोषी ठहराना भी सही नहीं है। लोग खुद दुनिया के सामने अपनी निजी जिंदगी के उन पहलुओं को सबके सामने खोलने के लिए तैयार हैं।
लेकिन, यहां बात स्मिता की हो रही है। कम से कम पोलीग्रॉफ मशीन तो यही कहती है। पोलीग्रॉफी मशीन (झठ पकड़ने की मशीन) व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक बदलावों के आधार पर सच और झूठ का फैसला करती है। लेकिन, यहां यह बात भी समझने की जरूरत है कि सच की यह मशीन वाकई में संदेह के घेरे से बाहर नहीं है। समय समय पर इस मशीन पर सवाल उठते रहे हैं। झूठ बोलने में माहिर लोग बड़ी आसानी से इस मशीन को धत्ता बताकर बच कर निकल सकते हैं। झूठ पकड़ने वाली इस मशीन की सच्चाई को भारतीय अदालत भी नहीं मानती।
अदालतों में लाई डिटेक्टर की रिपोर्ट को सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। इसे बस जांच में पुलिस की मदद के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिमी देशों में भी इस मशीन के नतीजों को सच नहीं माना जाता। www.antipolygraph.org जैसी विदेशी वेबसाइट पर पॉलीग्रॉफी मशीन से बचने के राह सुझाई गई है। यूट्यूब पर पॉलीग्राफी टेस्ट से बचने के रास्ते बताती कई वीडियो हैं।
एक बात और सोचने को इंसान क्या-क्या नहीं सोचता। बॉलीवुड अदाकारा के साथ डेट से लेकर जैकी चैंग को कर्राटों में पीटने तक... सोचने की कोई सीमा नहीं। ऐसे में किसी एक लम्हें में आए विचारों को सच मान लेना क्या सही होगा। क्या इन्हीं बातों को सच मानकर रिश्तों को परखा जाना सही है। वैसे भी हर आदमी का सच अलग होता है। जो आपका सच है, वो मेरा नहीं और जिसे आप सच मानते हैं उसे मैं झूठ। सवाल कई हैं और जवाब
भारत मल्होत्रा
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