धर्म-कर्म की आड़ में भूमि लियो दबाए।
क्या अब तुम्हारा नाम लें, जग खुद ही समझ जाए।
दे हो तुम बयान भी कितने उलट अजीब
दुनिया सारी पूछ रही कहां तुम्हारी तमीज़।
कहां तुम्हारी तमीज़ बात ये कोई न जाने
दुनिया को जानने वाले खुद को न जाने।
बात-बात में सबको तुम पाठ रहे पढ़ाए
पर कौन तुमको बुद्धि दे, कौन तुम्हें समझाए।
प्रवचन करते हो तुम, पर-वचन भी सुन लीजो कभी
बात-बात अपनी टांग फिर ना अड़ा दीजो कभी।
टांग न अड़ा दीजो कभी, लफड़ा बहुत बड़ा है।
हाथ में डण्डा लेकर क़ानून खड़ा है।
इसकी लाठी ऊपर वाले से भी अलग है
पड़ती भी है तेज़ और इसमें बड़ी धमक है।
कोई अड़ंगा, कोई है पंगा, कोई बुरा है, कोई है चंगा
अपन तो बस इतन जानें ये सारा है गोरखधंधा।
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