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शनिवार, 24 जनवरी 2009

यहीं तो हो तुम...

भारत मल्‍होत्रा 

ठहरा सिमटा सा मैं तेरी राह ताकता हूं 

ये जानते हुए कि तुम नहीं आओगे।

फिर भी तेरे आने की आस संजोए रखता हूं 

एक सवाल अचानक उठता है जेहन में,

कि क्‍या तुम सच में कहीं गए हो, 

आवाज आती है मेरे भीतर से कहीं,

नहीं तुम कहीं नही गए, यहीं हो। 

मेरे ह्दय में बैठे उसी तरह खिलखिला कर हंस रहे हो 

जैसे मैने कोई लतीफा सुनाया हो, 

तुम्‍हारे गाल उसी तरह शर्म से लाल हो गए हैं  

जैसे मैने तुम्‍हें अभी चूमा हो। 

मैं जान जाता हूं कि तुम मुझसे जुदा नहीं हो 

मुझमें ही कहीं बैठे कह रहे हो

मुझे कहां तलाश  रहे हो,

यहीं तो  हूं मैं ,

मैं राह से नजरें हटाकर बस तुम्‍हें देखने लगता हूं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. देख कहां रहे हो,
    यहीं तो हूं मैं ,
    मैं राह से नजरें हटाकर बस तुम्‍हें देखने लगता हूं।

    -बहुत सटीक!! बढ़िया है.

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  2. बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. अमर रहे गणतंत्र हमारा ! सार्थक लेखन हेतु बढ़ाई स्वीकारें .

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