भारत मल्होत्रा
ठहरा सिमटा सा मैं तेरी राह ताकता हूं
ये जानते हुए कि तुम नहीं आओगे।
फिर भी तेरे आने की आस संजोए रखता हूं
कि क्या तुम सच में कहीं गए हो,
नहीं तुम कहीं नही गए, यहीं हो।
जैसे मैने कोई लतीफा सुनाया हो,
तुम्हारे गाल उसी तरह शर्म से लाल हो गए हैं
मैं जान जाता हूं कि तुम मुझसे जुदा नहीं हो
मुझमें ही कहीं बैठे कह रहे हो
मुझे कहां तलाश रहे हो,
यहीं तो हूं मैं ,
मैं राह से नजरें हटाकर बस तुम्हें देखने लगता हूं।
देख कहां रहे हो,
जवाब देंहटाएंयहीं तो हूं मैं ,
मैं राह से नजरें हटाकर बस तुम्हें देखने लगता हूं।
-बहुत सटीक!! बढ़िया है.
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंअमर रहे गणतंत्र हमारा ! सार्थक लेखन हेतु बढ़ाई स्वीकारें .
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