चिट्ठाजगत www.blogvani.com

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

तुम मेरी हो..मेरी हो...मेरी हो प्रिये

तुम मेरी हो...मेरी हो...मेरी हो प्रिये
यह कहता है हरपल मेरा ह्दय

मेरी धड़कन में तुम
तुम मेरी श्‍वास में
मेरे जीवन के हर इक अहसास में
मेरा जीवन है केवल तुम्‍हारे लिए
तुम मेरी हो...मेरी हो...मेरी हो प्रिये

तुमको पाऊं ये मेरी है कामना
मैने की है तेरी अराधना
मेरे सजदे में तुम, तुम ही मेरी दुआ
तुम जैसा न दुनिया में कोई हुआ
मैं करूं स्‍व को समर्पित तुम्‍हारे लिए
तुम मेरी हो...मेरी हो... मेरी हो प्रिये


बंद पलकों में तुम ही समाए हुए
आंख खोलूं तो तुम ही दिखाई दिए
तुम हो छलावा कोई या सपना हो तुम
जहां देखूं मै वहां हो तुम ही तुम
राज दिल में कई तुम छुपाए हुए
तुम मेरी हो... मेरी हो... मेरी हो प्रिये

रूठना न कभी, भूलना न कभी
बंधन हमारा तुम खोलना न कभी
मैं दुनिया में आया तुम्‍हारे लिए
तुम मेरी हो... मेरी हो ... मेरी हो प्रिये
यह कहता है हर पल मेरा ह्दय

भारत मल्‍होत्रा

3 टिप्‍पणियां: