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गुरुवार, 26 मार्च 2009

यादों का संदूक...

मेरे दिल के कमरे में एक संदूक रखा है

जिसमें बंद हैं कई चीजें,

और, अच्‍छा ही है हमारे लिए कि वो बंद ही रहे

रखे है उनमें हमारी जिंदगी के कई खूबसूरत पल

वो मिलन की बातें, वो जागती रातें,

साथ ही बंद हैं, एक चुटकी आंसू और ढ़ेर सारी हंसी

उन्‍हें बंद ही रहने दो, क्‍योंकि हंसी तो फौरन फैल जाती है

और, फिर लग जाती है उसे जमाने की नजर

बंद है उसमें, कुछ गम और ढेर सारे सुख

सुख... जो तुम्‍हारी सांसों की महक से ताजा हैं अब तक

तो, अच्‍छा है.... बंद ही रहने दो उस संदूक को

क्‍योंकि, बाहर की हवा से सड़ने लग जाएंगे वो पल

संदूक, जिस पर तुम्‍हारे प्‍यार का ताला लगा है

और, चाबी है तुम्‍हारी यादें....

भारत मल्होत्रा

1 टिप्पणी:

  1. सुबह सवेरे
    कोहरे में सब कुछ
    धुंधला गया
    गुलाब का बूटा
    जिससे महकता था आंगन
    दरख्त जहां पलती थी गर्माहट
    मोड़ जहां इंतजार का डेरा था
    कुछ भी तो नहीं दिख रहा
    सब धुंधला गया
    दिल पर हाथ रखा तो
    वह धड़क गया
    तेरे ख्याल भर से

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