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शनिवार, 28 मार्च 2009

आचार संहिता और मेरी सड़क

कुछ दिन पहले लिखा यह लेख अब ब्‍लॉग पर चिपका रहा हूं

दो दिन पहले ही अपने हाथ पैर तुड़वाकर आया हूं। अरे... आप यह मत समझ बैठिएगा कि किसी पहलवान की बहन से इजहारे मोहब्‍बत कर दी थी। दरअसल, हमारे मोहल्‍ले की सड़क (माफ कीजिएगा रास्‍ता, वो भी अगर कहा जा सके तो) खस्‍ता हालत में है। बस, रात का समां था, अंधेरा घना था, बंदे की नजर चूकी और धड़ाम से गिर गए। अब कई जगह पैबंद लगाने पड़े।

अब टूटने फूटने के बाद हमारे अंदर का सिटिजन जर्नलिस्‍ट जागा। हमने धड़ाधड़ अधिकारियों को फोन लगाया, सड़क क्‍यों नहीं बनाते, उन्‍होंने उल्‍टा सवाल दाग दिया। आपकी सड़क का कित्‍ता काम हुआ है। हमने कहा अभी तो शुरु भी नहीं हुआ। वो बोले तो भूल जाओ और चुनावों के बाद ही फोन खड़काओ। हमने कहा, नेता जी ने वादा तो किया था। वो बोले, हमारा सिर मत खाओ, जाकर नेताजी से दिमाग खपाओ। हम बैसाखी का सहारा लिये नेताजी के पास जा पहुंचे। हमने कहा, हमारे यहां की सड़क टूटी है, उसे बनवाइए, वो बोले, भैया आप चुनावों के बाद आइए। हमने कहा, आपने वादा किया था, नेताजी बोले, तो भूल जाइए। अरे आप इतना भी नहीं जानते... आचार संहिता लागू है अब नए कामों पर सरकारी धन के खर्चे पर पांबदी है। आपकी सड़क का काम तो नयी सरकार ही करेगी। ये अजीब बात है, अरे सरकार पहले ही कौन सा काम करती है। वो बोले ये तो हमारी हुनरमंदी है और अब तो काम न करना हमारे हक में शुमार है।

बात तो सही है अपने देश के कानून के मुताबिक चुनावों की तारीखों का ऐलान होने के बाद किसी भी तरह का नया सरकारी काम नहीं हो सकता। लेकिन, जब काम करवाना नहीं होता तो काहे चुनावों तारीखों के ऐलान से पहले तो हाथ में कैंची लिए दौड़ रहे थे। उद्घाटन करवा लो...। थोक के भाव उद्घाटन कर रहे थे। वो बोले समय की मांग थी- जहां फीता मिले, फौरन काटो। काम तो होता रहेगा, बस अपने नाम की तख्‍ती लग जाए, हो गया- फलाणे नेता जी ने फलाणी तारीख को फलाणे की अध्‍यक्षता में डिमकाणे काम की शुरुआत की। उसके बाद ऐसी की तैसी, अगला जो आएगा भुगतेगा। उसने बनवा दिया तो भी क्रेडिट अपुन को ही मिलेगा, आखिर ‘शुरुआत तो हमने करवाई थी।‘ और, अगर नहीं बनवाया, तो कोप का भाजन बनेगा। दोनो ही सूरतों में हमारी ही ‘पौ बारह’ होगी। देखो जी , हमनें तो उद्घाटन कर दिया था, अब उन्‍होंने नहीं बनवाया तो हमारी क्‍या गलती है।

हमने कहा कहीं, अगर दांव उल्‍टा पड़ गया तो, उद्घाटन आप करें और सारा क्रेडिट कोई और ले जाए करना क्‍या है, बस तख्‍ती ही तो बदलनी है।‘ नेताजी बोले तुम बेकार की बातें करते हो, चलो जाओ अभी टिकट मिलने के बाद बात करेंगे। बहुत बेआबरू होकर नेताजी के कूचे से हम निकले... डांट मिली, लेकिन हमारी सड़क को लेकर हाथ खाली रहे। तो, दोस्‍तों गिरते रहिए, टूटते रहिए, पानी के लिए झगड़ते रहिए, तब तक के लिए गुड बॉय।

भारत मल्‍होत्रा

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