शनिवार, 11 अप्रैल 2009
मेरे आंसू उनकी हंसी...
हम रो पड़ते थे आंख में आंसू जिनकी देखकर,
वो मुस्कुरा रहे हैं, रोता मुझको देखकर।
क्या बिसरूं क्या याद करूं कोई बता दे मुझे,
वो चूड़ी खनकाना तेरा या नाम लिखना रेत पर।
बढ़ गया उस मोड़ से जहां हम थे मिले,
अब ना आउंगा कभी उस राह पर मैं लौटकर।
चलते रहे ताउम्र हम मगर कम न हुए फासले
रह गए हम बस अपने मुकदर को कोसकर।
इससे ज्यादा क्या कहूं मैं अपनी दास्तां,
दिन तेरे ख्यालों में गुजरे, रात तस्वीर देखकर।
भारत मल्होत्रा
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बहुत खूब ....मोहब्बत है .....शब्दों का जादू है
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