चलो क्षितिज तक साथ चलें
थाम हाथों को हाथ चलें
सफर की हो न थकान
कदमताल जब हो समान
जब तक तन में हो प्राण
बस यूं ही दिन रात चलें
चलो क्षितिज तक साथ चलें
ना कुछ पाने का संकल्प हो
ना कुछ खोने का विकल्प हो
ना रूठने मनाने का प्रपंच हो
बस यूं ही मस्त हाल चलें
चलो क्षितिज तक साथ चलें
सोमवार, 1 जून 2009
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चलो क्षितिज तक क्या क्षितिज के उस पारभी साथ चलते हैं
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
भाई, कविता के भाव बहुते उम्दा हैं,
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखते हो