गुरुवार, 19 नवंबर 2009
हर आसूं में तुम...
हम तुम्हें कतरा-कतरा कर भुलाते हैं।
और तुम समंदर बन आंखों में चले आते हो ।।
रोज खुद से वादा कि तुम्हें याद नहीं करेंगे ।
और तुम हो कि सांसों की तार में गूंथे चले आते हो।।
हम राह में पड़े रहते हैं सूखे पत्ते की तरह।
और तुम आंधी से गुजर जाते हो ।।
नजरें आज भी तेरा इंतजार करती हैं।
और न खबर आती है, न तुम आते हो।।
हमने आज भी तुम्हारे खत संभाल रखे हैं।
और तुम मौसम की तरह पल में बदल जाते हो ।।
इक-इक लम्हा सजाकर हमने जिंदगी बनाई है।
और तुम हर बात को हंसी में उड़ाते हो ।।
हमने तो मोहब्बत की थी, कोई खता नहीं की।
पर तुम क्यों हर बात पर हमें रुलाते हो।।
तुम भी इंसान हो, कोई खुदा नहीं ।
इस बात को तुम क्यों भूल जाते हो।।
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हम तुम्हें
जवाब देंहटाएंकतरा कतरा कर
भुलाते हैं
और तुम समन्दर बन
आंम्खों मे चले आते हो लाजवाब शुभकामनायें
भरत जी
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे!
और तुम हो कि सांसों के तार में गुंथे चले आते हो,
बहुत खूब!
रत्नेश त्रिपाठी
Very nice, so touching
जवाब देंहटाएंmubar ho ji
जवाब देंहटाएंबेनामी जी मैं आपकी टिप्पणी का अर्थ समझ नहीं पाया, आपसे अधिक स्पष्ट टिप्पणी की अपेक्षा है।
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