चिट्ठाजगत www.blogvani.com

सोमवार, 8 मार्च 2010

थोड़ा पागल हूं मैं

अपनों के नश्‍तरों का घायल हूं मैं
लोग कहते हैं दीवाना पागल हूं मैं

यह जमाना और उम्‍मीदे वफा
यारों, माफ करना मुझे थोड़ा पागल हूं मैं

तन्‍हां हो गया हूं दुनिया की भीड़ में
कुछ ज्‍यादा ही साफगोई का कायल हूं मैं

1 टिप्पणी: