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मंगलवार, 30 मार्च 2010

ज़ारा का वीर के नाम एक ख़त (व्‍यंग्‍य)

किंग्‍स इलेवन की हार के बाद ज़ारा (प्रीति‍ जिंटा) ने वीर (शाहरुख खान) को एक ख़त लि‍खा, जो डाक वि‍भाग की मेहरबानी के चलते मेरे पास पहुंच गया। सो, पाठकों के हि‍त को ध्‍यान में रखते हुये यहां चस्‍पा रहा हूं।

प्‍यारे वीर

तुम बहुत बदल गये हो। सच कहूं, तो अब तुम पहले जैसे नहीं रह गये। एक वक्‍त था जब तुम मेरे लि‍ये बॉर्डर टाप गये थे। अपनी पूरी जवानी खाक कर दी थी तुमने मेरे लि‍ये। भूल गये... जब मेरे लि‍ये सारी उम्र जेल में रहने का इरादा कर लि‍या था। और, इधर मैने भी तुम्‍हारे लि‍ये कोई कम पापड़ नहीं बेले। अपनी पूरी जवानी तुम्‍हारे इंतजार में गंवा दी, और बुढ़ापे में अपना मुल्‍क छोड़कर तुम्‍हारे साथ चल दी। पर न जाने क्‍यों, तुमने हमारे उस प्‍यार को बि‍ल्‍कुल भुला दि‍या।

तुम जो मेरी खुशी के लि‍ये कुछ भी कर सकते थे, आखि‍र कैसे तुम्‍हें मेरे इस ग़म का अहसास नहीं हुआ। तुम्‍हारी टीम ने हमारे किंग्‍स को बुरी तरह पीट रही थी और तुम... थे कि‍ चुपचाप देखते रहे। तुम यह भूल गये कि‍ हर कोई मेरी टीम को पीट रहा है, तो मैं कि‍तनी दुखी हो रही होंगी। ऐसे में भी तुममें और औरों में कोई फर्क ही कहां बाकी बचा। सोचो, अगर मेरी खुशी के लि‍ये तुम हार जाते तो हम दोनों बराबरी पर आ जाते। लेकि‍न, तुम शायद यह बर्दाश्‍त नहीं कर सकते थे कि‍ हम दोनों बराबर आयें।
तुम्‍हारे बल्‍लेबाज हमें पीटते रहे और तुम्‍हारे मुंह से एक शब्‍द न फूटा। गांगुली, जि‍सके बल्‍ले पर गेंद नहीं आती वो हमारे खि‍लाफ न जाने उसमें कहां से जोश आ गया। और तो और, वो ति‍वारी...दो-तीन मैचों से खराब खेल रहा था, लेकि‍न उसे भी मेरी ही टीम मि‍ली पीटने के लि‍ये... मुंहा सो-सोकर जागने वाला।

बॉलिंग में भी वो तुम्‍हारा बांड... ऐसे खेल रहा था जैसे शेन नहीं जेम्‍स बांड हो। सब कह रहे थे बहुत महंगा है, पर सारी कीमत हमारे खि‍लाफ ही वसूलनी थी उसे। मुंहा हमारे बल्‍लेबाजों के वि‍केट उखाड़ने लगा। अंग्रेज कहीं का। इनका तो काम ही है फूट डालो और राज करो... आखि‍र क्‍यों... तुम इनकी चालों को नहीं समझ सके।
पर सच कहूं... मुझे इन सबसे कोई शि‍कायत नहीं। जब तुम ही अपने नहीं रहे... तो भला दूसरों से क्‍या गि‍ला शि‍कवा। खैर... जब हमारी (टीमों की) अगली मुलाकात होगी तो शायद तुम मेरी भावनाओं की कद्र करो।


तुम्‍हारी (थी कभी)
ज़ारा

5 टिप्‍पणियां:

  1. राम राम जी,

    डाक विभाग कि गलती से तो भरी नुक्सान हो सकता है "जारा" का!

    हम दुआ करेंगे कि "वीर" इसे यहाँ पढ़ ले!

    बहुत बढ़िया लगा जी आपका लेख!मजा आ गया!

    कुंवर जी,

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  2. :):)

    बढ़िया है...ओम शांति ओम वीर के ज्यादा करीब रही है...उप्प्स वीर नहीं ओम के

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  3. मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोये... भइया अब वो जमाने कहां रहे, जब लैला के लिए मजनूं ने बाटा के कई जोड़ी जूते घिस दिए। अब तो... छन छन सुनो छनकार, ये दुनिया है कालाबाजार... कि पैसा बोलता है... ओर जब पैसा बोलता है तो दूसरी कोई आवाज नहीं सुनाई देती... किसी को भी... चाहे वीर हो... चाहे जारा हो... चाहे यश चोपड़ा हों... वैसे पिछली बार वीर की किसने सुनी थी।

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