चिट्ठाजगत www.blogvani.com

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

बस एक मांग की दरकार है (व्‍यंग्‍य)

बहुत दिनों से सोच रहा हूं, एक मांग तलाश लूं. अरे नहीं भई! भरने वाली नहीं, वो वाली जिसके लिए चिल्‍लाया जाता है. शोर मचाया जाता है. रास्‍ते बंद किये जाते हैं. रेल की पटरियों पर तम्‍बू गाड़े जाते हैं. दूध, घी, अनाज, फल और सब्जियों समेत सभी चीजों की सप्‍लाई पर ताला लगाया जाता है. हां, वही मांग जो आजकल बेहद चलन में है।


सही या गलत से अपने को कोई सरोकार नहीं. उचित-अनुचित के पचड़े में पड़ने का अपना दिल नहीं. ऊंट पटांग कैसी भी हो, पर मांग हो. नैतिक-अनैतिक की सीमाओं से परे बस एक मांग. अब इतनी गौण बातों को लेकर कैनवॉस छोटा करने का अपना कोई इरादा नहीं।


इतने में मित्र चले आए, हमने उन्‍हें भी अपनी मांग का दर्द सुनाया. मांग... इसकी क्‍या जरूरत आन पड़ी. 'अपने लोगों का भला करने के लिए', मेरा जवाब था. अरे, अपने लोगों के लिए मांग की दरकार, तनिक भी लज्‍जा नहीं आती तुम्‍हें यार. हमें उसे समझाया और 'चैरिटी बिगंस एट होम' का मूल मंत्र सिखाया. बाबू अपना पेट भरा हो, तभी मांग का मजा आता है, और जो इसके बाद लोगों की 'बात' करे वही नेता कहाता है।


लेकिन, मांगोगे क्‍या, कुछ सोचा है. 'समझ नहीं आ रहा, यही तो असली लोचा है' वैसे मुद्दों को लेकर हम अपना लक्ष्‍य छोटा नहीं करना चाहते, बस किसी भी बात को लेकर मांग कर देंगे. किराये पर बंदे लाकर सड़क और रेल भर देंगे. पहिये जाम होंगे, तभी तो बात आगे बढ़ेगी।

बस लोग चाहिए तो पटरियों पर घर बसा सकें. कुछ दिन अपने घर से बाहर बिता सकें. कभी-कभार लाठी भी चल सकती है, लेकिन घबराने का नहीं. बस कुछ दिन की बात है, उसके बाद सब ठीक हो जाएगा।


लेकिन भैया, रेल और बस रोकोगे, तो लोग परेशान होंगे. बाबू्... तुम भी अजब चिरकुट हो; परेशानी के तेल में मांग की पूडि़यां तली जाती हैं. और लोगों की दिक्‍कतों की सूजी से बने हलवे का स्‍वाद तो परमानंद होता है. तुम ज्‍यादा मत बतियाओ, बस फौरन इक मांग बताओ. अरे, नौकरी में आरक्षण मांग लो. अरे यार कब तक वहीं ठहरे रहोगे. आरक्षण तो अब पुराना हो चुका है, बंदे का इरादा कुछ नया करने का है. इसके लिए एक नया तरीका भी सोच लिया है. इंटरनेट पर अभियान चलाया जाएगा. मांग तलाशने के लिए धरना किया जाएगा. मांग तलाशने के लिए धरना? कुछ अजीब नहीं है. ये माजरा कुछ भी अजीब नहीं है... हम बोले, बाबू जब बिना कहानी के फिल्‍में बन सकती हैं, बिना मुद्दे के दिनों तक संसद बंद रह सकती है, बिना पीएम के लोकसभा चल सकती है, तो क्‍या हम मांग के बिना धरना नहीं दे सकते. खैर, यह बातें ज़रा हाई लेवल की हैं, तुम्‍हारी सोच से आगे. मैं चलता हूं, अखबार में मांग के लिए विज्ञापन देना है... आपमें से किसी के पास कोई मांग हो तो बताइएगा, आपकी मांग के लिए भी धरना किया जा सकता है. जिसके नीचे लिखा हो.

* नियम व शर्तें लागू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें