सर मैं फलां लोन कंपनी से बोल रहा हूं, क्या आपको कार लोन की कोई रिक्वायरमेंट है. तेरी... दिमाग का पारा बस के इंजन से ज्यादा गरम हो रहा था, अगर कार लेने की औकात होती तो, क्या मैं बस में धंसा पड़ा होता. 'सर रेट ऑफ इंट्रस्ट में डिस्काउंट मिल जाएगा'. अब फोन रख वरना मार खाएगा.
सुबह-सुबह अभी घड़ी के कांटे ने मुश्किल से आठ बजाए थे. मैं बस में एक पांव पर लगभग लटका हुआ था. भीड़ किस कदर आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है इसका अंदाजा मुझे हो चला था. कई लोग बिना किसी चीज को पकड़े बस दूसरों के सहारे खड़े थे. मेरा शरीर जकड़ा हुआ था और बगल वाला ताऊ मुझ पर अकड़ा हुआ था. बामुश्किल मैं सांस भर ले पा रहा था, इतने में फोन की घंटी बजती है. हाथ तंग, हालत पस्त और भीड़ वो तो पूछिए ही मत जबरदस्त... एक बार को सोचा यार बाद में सुन लूंगा, लेकिन पेंट की जेब में वाइब्रेशन मोड पर रखे फोन की झुनझुनाहट काफी परेशान किए जा रही थी. बड़ी मुश्किल से हाथ को बाजू वाले की कमर पर फिराते हुए नीचे लाया, तो अपनी जगह दूसरे की जेब को पाया. उसने मुझे देखकर गुस्साकर त्योरियां चढ़ाई, मैंने नजर नीचे झुकाई और बोला, बाबू क्यों इतना उबलते हो, भीड़ कितनी है, तुम भी तो समझते हो. खैर, बात आयी गयी हो गयी, अपनी जेब की मेरी तलाश जारी रही. बड़ी मुश्किल से उस यंत्र तक हाथ पहुंचाया और उसे बाहर निकाला. दो बार हैलो बोलने के बाद सामने से आवाज आती है, 'सर मैं फलां लोन कंपनी से बोल रहा हूं, क्या आपको कार लोन की कोई रिक्वायरमेंट है.' तेरी... दिमाग का पारा बस के इंजन से ज्यादा गरम हो रहा था, लेकिन खुद को समझाते हुए मैं बोला, मेरे यार, अगर कार लेने की औकात होती तो, क्या मैं बस में धंसा पड़ा होता. 'सर रेट ऑफ इंट्रस्ट में डिस्काउंट मिल जाएगा'. अब फोन रख वरना मार खाएगा, मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा. खैर, वहां से पीछा छुड़ाया, लेकिन यह समझ नहीं आया कि सुबह-सुबह इन्हें और कोई काम नहीं है क्या. यही तो इनका काम है, मेरी अंदर से आवाज आयी.
खैर, इस बात को भुलाता हुआ, दफ्तर में दाखिल हुआ. कुछ देर बाद ऑफिस में बॉस के साथ मीटिंग का दौर जारी था. बात बेहद जरूरी थी और मामला गंभीर. बॉस चला रहे थे व्यंग्यों के तीर. काम को लेकर काफी डांट पिलायी, इसी बीच हमारे फोन की घंटी घनघनाई. इससे पहले कि बॉस साइलेंट हों, मैंने फोन का ही गला दबा दिया. लेकिन, एक के बाद लगातार फोन आते रहे और मेरा ध्यान भटकाते रहे. नंबर अंजान था, लेकिन मैं परेशान था. कहीं कोई टेंशन तो नहीं, यह सोचकर मैं बॉस से एक्यूज मी बोलकर बाहर आया, फोन कान से लगाया सामने से आवाज आयी, हम 'अनाथ आश्रम' से बोल रहे हैं, क्या आप कोई मदद करना चाहेंगे. मैडम, आप बाद में फोन कीजिए. प्लीज अभी के लिए बख्श दीजिए. नौकरी चली जाएगी तो मैं भी अनाथ हो जाऊंगा, फिर आपसे पता लेकर आपके यहां आऊंगा. खैर, उन मैडम से भी पीछा छुड़ाया.
कहते हैं केले और अनचाही कॉल्स हमेशा दर्जन में आती हैं, तो प्रकृति का यह नियम यहां भी जारी रहा. रात को नींद आंखों पर दस्तक देने को थी. पलकों पर खुमारी छाने को थी कि फोन फिर घनघना उठा, इस बात मैं झनझना उठा. यहां-वहां हाथ मारकर फोन तलाशा, बिस्तर के दूसरे कोने पर महाशय हुए थे पड़े. इससे पहले कि मैं कुछ बोलता सामने से मदहोश आवाज आती है, 'हैलो' कैसें है आप, अकेले जिंदगी कैसे काट रहे हैं, मुझसे बात कीजिए, मेरे दोस्त बनिए. इस बार रहा नहीं गया, गुस्से में एकाध 'धार्मिक प्रवचन' सुना दिए. लेकिन, सब बेकार. मैसेज रिकॉर्डेड था. बस फोन काट दिया और बिस्तर पर सोने की कोशिश में लेट गया. सुबह-सुबह की पहली कॉल के इंतजार में.
आप कह सकते हैं कि भैया डू नॉट डिस्टर्ब सर्विस क्यों नहीं चालू करवाते. तो जरा सोचिए, अगर ऐसा होता तो क्या आप यह पोस्ट पढ़ पाते, तो दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालिए और फटाफट कुछ कमेंट्स दे डालिए.
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