'जिद करो दुनिया बदलो.' यह है भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की थ्योरी. सबसे अलग और जुदा. नए हिंदुस्तान की नयी पंच लाइन. विश्व कप के फाइनल टीम को धोनी की इसी जि़द की दरकार भी थी. और, अपनी इसी जिद की वजह से उन्होंने वो कर दिखाया जिसका इंतजार हर हिंदुस्तानी को था, वो भी 28 सालों से.
इस विश्व कप में फाइनल से पहले धोनी का बल्ला शांत रहा. उनकी सबसे बड़ी पारी 34 रनों की रही. और, खिताबी मुकाबले में जब 275 रनों का पीछा करते टीम 114 रनों पर अपने 3 विकेट गंवा चुकी थी, धोनी ने नंबर पांच पर बल्लेबाजी करने का फैसला किया. फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह से पहले. यह उनकी 'जिद' ही थी, फाइनल में कुछ करने की जिद, चुनौती का सामना करने की कप्तानी जिद. मुश्किल घड़ी में मोर्चा संभालने की जिद.
अपनी इस पारी में उन्होंने वो किया जिसके लिए वो जाने जाते हैं और वो भी जो उस समय की जरूरत रही. फील्डरों को छकाया और खाली जगहों पर रन बटोरे. कभी उनके ऊपर से तो कभी उनके अगल-बगल से गेंद को खेला. और जरूरत पड़ी तो अपने जाने माने अंदाज में गेंदबाजों पर हमला भी बोला. और छक्का मारकर मैच खत्म कर धोनी ने जताया अपना रॉयल अंदाज. यह बात सच है कि सचिन तेंदुलकर भारत के अकूत संपत्ति हैं और धोनी यंगिस्तान के यंग आइकॉन.
धोनी की सबसे बड़ी खूबी है, उनका कूल अंदाज और गजब का आत्मविश्वास. भरोसे और यकीन का दूसरा नाम बन गए हैं धोनी. हमेशा शांतचित्त बने रहना. हालात चाहे जैसे हों, आप धोनी को कभी अपना आपा खोते नहीं देखेंगे. वो अपने ही अंदाज में आप काम करते जाएंगे. उनका यह अंदाज हर जगह नजर आता है, फिर चाहे वो मैदान पर हाथ में बल्ला थामे हों या विकेट के पीछे दस्ताने पहने खड़े हों. धोनी हर जगह बेहद शांत नजर आते हैं. पत्रकारों से बात करते समय भी वे बेहद नियंत्रित और आत्मसंयमित नजर आते हैं. आखिर यही तो धोनी की खासियत है.
धोनी की कामयाबी की एक बड़ी वजह है उनका लीक से हटकर चलना. अपना रास्ता खुद बनाना. वो करना जो आपका दिल कहे. उनके लिए नियम वह हैं जो उनका दिल और दिमाग कहता है. हालातों के हिसाब से अपने नियमों में बदलाव करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं. फैसला गलत साबित होने पर वे अपनी गलती मानने का भी दम रखते हैं. सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले के बाद उन्होंने माना था कि वे मोहाली की विकेट को सही तरीके से पढ़ नहीं पाए और इसीलिए उन्होंने अश्विन की जगह नेहरा को टीम में शामिल किया. जिसे अपनी गलती का अहसास होता है, वही तो उसमें सुधार भी करता है, यह बात धोनी अच्छी तरह जानते हैं. खुद के फैसले गलत साबित हो जाने पर भी वे कभी बचने के रास्ते तलाशते नजर नहीं आते.
अपनी बात बिना सख्त हुए या तंज कसे अपनी बात साथी खिलाडि़यों तक पहुंचाने की खासियत भी है धोनी में. साथी खिलाडि़यों की काबिलियत और खूबी को पहचानते हुए उन्हें आत्मविश्वास का संचार करना भी बखूबी जानते हैं धोनी. कैसे टीम से उसका बेस्ट करवाना है यह लाजवाब कप्तानी गुण भी उनमें भरा हुआ है. युवराज सिंह के हाथों गेंद थमाकर उन्हें यह अहसास दिलाया कि वे टीम का बेहद अहम हिस्सा हैं.
अपनी पारी के दौरान भी धोनी बेहद थके नजर आए. कमर में दर्द से कराहते मैदान पर लेटे धोनी को देखकर एक बार को ऐसा लगा कि शायद वे रनर लेंगे या रिटायर्ड हर्ट हो जाएंगे, लेकिन यहीं धोनी दूसरों से अलग हो जाते हैं. उनका दृढ़ निश्चय और जज्बा उन्हें भीड़ से अलग 'महेंद्र पान सिंह धोनी' बनाता है, जहां वे एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरते हैं. अपने व्यक्तिगत हितों और दर्द को भुलाते हुए बड़े लक्ष्य की ओर नज़रें गढ़ाए. अपने उस दर्द के बाद भी धोनी मैदान पर बेहद फुर्ती से दौड़ते नजर आए. उनका हर एक डग टीम इंडिया को जीत के करीब, और करीब ले जाता नजर आया.
धोनी की निगाहें जम गयीं थीं. अब तक मुरलीधरन को एक-एक रन करके खेलने वाले धोनी ने उनकी गेंदों पर भी प्रहार शुरू कर दिया. श्रीलंका का तुरुप का इक्का भी टीम इंडिया के इस लाजवाब खिलाड़ी के सामने नहीं चल पाया. दूसरी ओर गंभीर, जो अभी तक टीम इंडिया के रन चेस का आधार स्तंभ बने हुए थे, अपना आपा खो बैठे और अपने एक लाजवाब शतक से महज तीन रन दूर विकेट गंवा बैठे. परेरा की गेंद पर गंभीर ने आगे बढ़कर बड़ा शॉट खेलने की कोशिश की और गेंद बल्ले को छकाती हुयी मिडिल स्टंप से जा टकराई. लेकिन, धोनी शांत रहे. उनकी निगाहें विश्व कप ट्रॉफी पर थीं.
श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगाकारा की भाव-भंगिमाएं उनकी असमर्थता बयां करती नजर आयीं. कुलाशेखरा हों या परेरा कोई भी धोनी की धूम को नहीं रोक पाया. भारत धीरे-धीरे इतिहास दोहराने के करीब पहुंच रहा था. हर एक रन के साथ कम होता जा रहा था जीत का फासला. मैदान में बैठे 40 हजार दर्शक और मैदान से बाहर 1 अरब 21 करोड़ लोगों की दुआएं टीम इंडिया के इस कप्तानी की कप्तानी पारी को सराह रही थीं.
मलिंगा के एक ओवर में कलाईयों के सहारे एक के बाद एक दो चौके लगाकर धोनी ने संगाकारा की आखिरी उम्मीद को भी धराशायी कर दिया. और कुलाशेखरा की गेंद पर छक्का लगाते ही वो लम्हा आ गया, जिसका इंतजार हर क्रिकेट प्रेमी हिन्दुस्तानी बीते 28 सालों से कर रहा था. यह वनडे क्रिकेट की एक लाजवाब पारियों में रही.
धोनी की बल्लेबाजी से इतर उनकी कप्तानी इस विश्व कप में शानदार रही. और इसी के दम पर भी उन्होंने टीम को यहां तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी. उनकी खूबी सी बन गया है, सही समय पर सही फैसला लेना. क्रिकेट के जानकार उन्हें एक बहादुर जुआरी कहते हैं. जो खतरा उठाने से नहीं डरता. और, ज्यादातर उसका खतरा टीम के लिए फायदेमंद ही साबित होता है.
और अगर बात बल्लेबाजी की जाए, तो वो कहते हैं, 'सेव द बेस्ट फॉर द लॉस्ट'. यानी अंत के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ बचाकर रखना, और धोनी ने वही कर दिखाया.
Dhoni, cool as a cucumber, played a chance less innings and ensured the world cup for his country. With that knock, he has cemented his place amongst greatest captains.He will be remembered and respected for a long time. His name probably already has become a part of the golden annals of cricket.
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