मंगलवार, 17 जनवरी 2012
विश्वास...
विश्वास. एक शब्द में सिमटे हैं कितने मायने. अपनेपन का अहसास, किसी के होने का अहसास, किसी ऐसे कंधे का सहारा जो आंसुओं से लेकर अर्थी तक सहारा देगा. एक ऐसा हाथ जो थाम लेगा हर कठिन डगर पर मुझे, गिरने से पहले. एक ऐसा संबल जिस पर टिक जाती है रिश्तों की पूरी इमारत. और उस इमारत की खिड़कियों से छनकर आती गुनगुनी धूप भुला देती सारे गम. विश्वास. जो भी एक अहसास भर है. एक छत्र सरीखा. जो तपती गर्मी और बरसात की मार से भी बचाता है किसी को. किसी पेड़ की घनी छांव जैसा. जिसके नीचे बैठकर गुजार सकते हैं ज्येष्ठ का पूरा मौसम. मखमली गिलाफ की रजाई सरीखा होता है विश्वास. विश्वास... अगनित मायनों को अपने भीतर समेटे हुए एक शब्द...
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