कल रात वो फिर नहीं सो सका. बीती बातों की यादों ने आंख से नींद जो उड़ा दी थी.यूं तो ये रोज का ही सिलसिला हो चला था. बिस्तर पर जाने से पहले वो हर रात यह इरादा करता कि आज यादों के पन्ने नहीं पलटूंगा, लेकिन सिरहाने पर सिर रखते ही इरादे यूं हवा हो जाते जैसे आग पर रखते ही कपूर यादें खुद-ब-खुद किसी फिल्म की तरह चलने लगतीं. उसे याद आता कि सब कुछ तो था उसके पास. यार-दोस्त, घर-परिवार, रिश्ते-नाते और.... प्यार. हां, प्यार... कभी यह बयार भी बहती थी उसकी दुनिया में. और क्या चाहिए इंसान को. इसके अलावा किसी अन्य चीज की न उसे चाहत थी, न दरकार और न ही उसने कभी इनके बिना अपनी जिंदगी की कल्पना भी की होगी. हां, कामयाब इंसान बनना जरूर बनना चाहता था वह. कुल मिलाकर वह जीता था अपने ही एक कल्पनालोक में. एक ऐसी दुनिया जहां सब कुछ खिला-खिला और रंगीन हो. जहां, विश्वास के पेड़ों तले रिश्तों की छांव सूकून फरमाती हों. लेकिन, ऐसा न हो सका. हां, उसने गलतियां की थीं. कई गलतियां. लेकिन, क्या उसकी सजा इतनी बड़ी मिलनी चाहिए थी उसे. शायद.... नहीं. यह इंसानी प्रवृत्ति है कि अपनी गलतियों का आकलन करते समय वह समय ज्यादा उदार होता है. कहीं वो भी ऐसा नहीं हो रहा. हो सकता है... कई थीं दुविधाएं. अपने संपूर्ण हल को तलाशतीं. यादों की कशमकश जारी थी कि अगले मुहल्ले की मस्जिद से अजान की आवाज़ आने लगी. ओह! आज फिर आंखों में ही कट गयी रात.... अब उसे बस उसी का सहारा था, जिसका बुलावा इस अज़ान में आ रहा था...
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