आओ कुछ बुनते हैं आज. ख्वाबों के धागों में अरमानों के मोती लगाकर उसे धडकनों की माला में पिरोते हैं. कुछ दुख, कुछ दर्द, कुछ आंसू और कुछ बिखरे हुए लम्हों से सजाते हैं उसको. कुछ हंसी, कुछ अंजानी सी मुस्कुराहटें, तकिये के नीचे दबी कुछ यादें, अलगनी पर सूखते इंतजार को भी इसमें मिला देते हैं. नक्काशी करते हैं इस पर हमारे साथ बिताए वक्त से. वो सड़क पर बिना बात की प्यारी सी लड़ाई की भी गिरह बांधते हैं कहीं. सड़क पार करते थामे गए हाथ की उस गर्माहट के अहसास को इसमें संभालकर लगाना होगा. पर सबसे कीमती नगीना तो वो ठोकर होगी जब मुझसे पहले याद आया था अमरूद...
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