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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

यादों की किताब और तुम...

यादों की किताब में कई अध्‍याय हैं तुम्‍हारे. कई सफे गलबहियों के. कई तुम्‍हारे हाथ की उस छुअन के नाम भी हैं. कई लकीरों में जिक्र है तुम्‍हारी आंखों का. कई सफे तो सिर्फ तुम्‍हारी जुल्‍फों के जिक्र भर से रंगे गए. हां, तुम्‍हारी दुकानदार से अड़ने, लडने, बिगड़ने और झगड़ने का भी जिक्र हुआ है कई बार. यादों की किताब में कई अध्‍याय हैं तुम्‍हारे.... तितलियों से होड़ करती तुम्‍हारी चंचलता को भी उतारा है मैंने. चिडि़यों सा आजाद तुम्‍हारे उन ख्‍यालों का भी ख्‍याल रहा मुझे. हां... नदियों से तुम्‍हारे अल्‍हड़पन को भला कैसे भूल सकता था मैं. महाकाव्‍य योग्‍य तुम्‍हारी हँसी को भी मैंने समेटने की कोशिश की. बहुत कुछ समेटना चाहा मैंने अपनी किताब में. हां यादों की किताब में. क्‍योंकि बस अब वही मेरा है. और मेरी इन यादों पर तो किसी और का अधिकार नहीं.... क्‍यों

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