ये ऊंचे महलों वाले कितने ग़रीब होते हैं
घर के बाहर इनके भूख से बच्चे रोते हैं
जिंदगी इनकी भी गुजर जाती है यूं ही
ये और बात हैं कि ये जरा बदनसीब होते हैं
तेरी रहनुमाई में यह सब हो रहा है खु़दा
तू ही बता तेरी दुनिया में लोग ऐसे क्यों होते हैं
ग़म की सिलाईयों का इन पर असर नहीं होता
अपनी मैय्यत को ये खुद अपने कांधों पर ढोते हैं
चंद गमगीन लम्हें जो न गुजार सके साथ तेरे
ऐसे लोगों के पास उम्र भर के वादे होते हैं
चांद रात भी इतनी स्याह हो चली है आजकल
हर इक मोड़ पर यहां उल्लू रोते हैं
दूर कहीं रोशनी नजर आती तो है
थोड़ा सब्र करो उजाला बस होने को है
अमां गजब लिखा है यारा
जवाब देंहटाएंgood
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