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शनिवार, 15 सितंबर 2012


इसके मुंह से प्‍याज की महक आ रही है
यह बहुत अमीर है इसकी हालत बता रही है

अभी तक कैसे जिंदा है ईमां इसका
कोई बात है जो इसकी मुफ़लिसी छुपा रही हैं

आज के पर्चे में छपी है खबर उसकी
जवां बेवा जिसकी देखो वो जा रही है

मर गए कल फिर भूख से कितने
ये एंकर देखो बेशिकन बता रही है

मेरी आंखों का गुमान है ये कि छाया है धुआं इतना
शाम क्‍यों इतनी स्‍याह हुई जा रही है

महंगाई मारती है तो मर जाओ, शोर न करो
सरकार तुम्‍हारी भलाई के कदम उठा रही है

मुमकिन है कि उन्‍हें मेरी याद आती हो
हिचकियां इन दिनों कुछ ज्‍यादा आ रही हैं

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