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शनिवार, 18 जनवरी 2014

खामोश बातें...

तुम चुप, मैं चुप, चलो हवाओं को बातें करने दें
लबों को रहने दें ख़ामोश, आंखों को बात कहने दें

सब कुछ तो पास है तेरे अगर यार साथ हैं
बात ज़रा सी है, पर ये बात कहने दे

उनके सिर न रखना जफ़ाओं का बोझ कभी
हमें बहुत कुछ कहती है दुनिया, ये भी कहने दे

बरसने दें मोती, जो बरसते हैं आंखों से
दिल की मिट्टी को जरा नरम रहने दे

अब तो मुलाक़ात भी होगी अनजानों की तरह
उनसे तारुर्फ़ के लिए ज़रा गुंजाइश तो रहने दे

रिश्‍तों को समझ, उन्‍हें ग़लत शक्‍ल न दे
जो, जो है उसे बस वही रहने दे

मुलाकात...

अब कभी न रूबरू दिल से दिल की बात होगी
कहेंगे दिल का हाल हम, जब ख्‍़वाब में मुलाकात होगी

उनसे कह दो नहीं मालूम क्‍यों दिल बहक गया अपना
कुछ न कुछ तो दोस्‍त उनमें भी बात होगी

कब से सीने में एक सहरा लिये फिर रहे हैं हम
जानें कब बादल गरजेंगे, जानें कब बरसात होगी

शिकवा शिकायत करेंगे उनसे हम एक दिन जरूर
धड़कनें जब न करेंगी बग़ावत, ज़ुबां जब साथ होगी

रविवार, 5 जनवरी 2014

प्‍यारा डर

तुझे खोने के डर से, तुझे पाने से डरता हूँ
मैं करना चाहता हूँ क्‍या, मगर क्‍या करता हूँ।

तुमसे मिलने की चाहत कभी ख़त्‍म नहीं होती
तेरे जाते ही मैं फिर तेरा इंतज़ार करता हूँ

गुज़ारिश तुमसे इतनी है कि ख़फ़ा न होना तुम हमसे
साथ तेरा न छूटे कभी, यही फ़रियाद करता हूँ

संभल के रहना इश्‍क़ से दुनिया मुझको सिखाती है
जानता हूँ यह बात, मगर ख़ता यह हर बार करता हूँ

तमाशा इश्‍क़ को समझती है, तो समझा करे ये दुनिया
मैं सारी कायनात के सामने तुझसे इश्‍क़ का एलान करता हूँ

शनिवार, 30 नवंबर 2013

बेटा ज़रा संभल के... ओ बाबू ज़रा संभल के

आने वाले हैं चुनाव
नेता चलेंगे अपने दांव
बेटा ज़रा संभल के, ओ बाबू ज़रा संभल के।

वादों और इरादों का अब खुलेगा ताला
सड़कें बनेंगी तेरा यहां पे और खुदेगा नाला।
ये तो बड़ा पुराना दांव, कहीं फिसल न जाएं पांव
बेटा ज़रा संभल के, ओ बाबू ज़रा संभल के।

खद्दर का कुर्ता अब होगा और गांधी की टोपी
हाथ जोड़कर द्वारे तेरे आएंगे पहन के धोती
करेंगे ये गुणगान, तेरे काट लें कहीं कान
बेटा ज़रा संभल के, ओ बाबू ज़रा संभल के।

चालू और कालू दोनों हाथ मिलाते जाएं।
कल तो गरियाते थे, अब साथ में खाना खाएं।
सियासत का यह रंग, बदलें हैं सबके अब ढंग।
बेटा ज़रा संभल के, ओ बाबू ज़रा संभल के।

मजहब और जाति की याद दिलाने आएं।
ताऊ-चाचा बोल के पैरों हाथ लगाएं।
चाल इनकी और चरित्र, दोनों हैं बड़े विचित्र
बेटा जरा संभल के, ओ बाबू जरा संभल के

24 घंटे बत्ती जलेगी, नलों में बहेगा पानी।
स्‍कूल को जाएगी अब हरेक बिटिया रानी।
ऐसा दिखाएंगे स्‍वप्‍न, कहानी कभी न होगी ख़त्‍म।
बेटा ज़रा संभल के, ओ बाबू ज़रा संभल के।

सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

थाम ले डोर जीवन की


जीवन की रफ़्तार को थाम सका न कोए
आज जो तेरा है बंधु, कल दूजे का होए।। 
कल दूजे का होए, करे काहे को चिंता
चिंता चिता समान है, कह गए साधू-संता।। 

तेरे हाथ में जो है तू उसकी ले ले मौज
खुशी तेरे भीतर है, बाहर न उसको खोज।। 
बाहर न उसको खोज, सुन ले बात है प्‍यारी
आज ही से कर ले तू अपनी तैयारी।। 

छोड़-छाड़ के फिक्र ये फाका, काम कर ले भाई
घड़ी जो बीते एक बार, वो लौट के फिर न आई।।
लौट के फिर न आई, बात ये सोलह आने सच्‍ची
कामयाबी तेरी होगी, गर नीयत है तेरी सच्‍ची।

मेहनत और नीयत से नियत और नियति बदले
दुश्‍मन भी अपने हो जाएं, गर हो प्रीति मन में।।
सोलह आने की एक है सीधी सच्‍ची बात
दिन जरूर आता है, चाहे जितनी काली हो रात।।

भारत मल्‍होत्रा

बुधवार, 30 जनवरी 2013

तेरा चेहरा निगाहों में...



चॉंद को देखकर दिल मचलने लगा
तेरा चेहरा निगाहों में ढलने लगा।

तेरी यादें दिल में उतरने लगीं
तेरा ग़म ऑंखों से पिघलने लगा।

जि़क्र तेरा छिड़ा हुआ ये असर
फ़ूल सहरा में जैसे कोई खिलने लगा।

तेरा पैग़ाम लाती है बाद-ए-सबा
तेरी मुस्‍कान जैसे है कोई दुआ।

मेरे घर में जब तेरा साया पड़ा
घर मेरा ज्‍यूं कोई मंदिर हुआ।

तेरी नज़रों में जब मैं डूबा कभी
न उतरे कभी वो नशा सा हुआ।

चांद को देखकर दिल मचलने लगा
तेरा चेहरा निगाहों में ढलने लगा...

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

इतना मजबूर है ये इंसा


इतना मजबूर है ये इंसा कि क्‍या कीजिए
कोई तो दर्द-ए-दिल की दवा कीजिए।
अब रोकर भी नहीं मिलता है चैन यहां पर
मिलता हो जहां चैन मुझे उसका पता दीजिए।

यूं तो हर किसी मिला कीजिए, मगर ज़रा फ़ासला रखिए
दिल में रखिए ज़ख्‍़म, लबों पर अपने दुआ रखिए।
कहिए न किसी से यूं हाल-ए-दिल अपना
अपनी दौलत को निगाह-ए-बद से बचा रखिए।

तिजारत की रवायत ने मोहब्‍बत को भी मारा है
जिधर देखो उधर बस इक यही नज़ारा है
मैं कह दूं अगर हक़ीकत तो उसे इल्‍ज़ाम न कहना
मेरे दोस्‍तों ने ही मुझको बारहा मारा है।

वफ़ा का दरिया कब का सूख चुका
था जो कभी तेरा, तुझे कब का भूल चुका।
अब क्‍यों रोशन रखते हो यादों की शमां
नशेमन तेरा कब का तूफान लूट चुका।

मर चुका है यहां लोगों की आंखों का भी पानी
आप तो अपना आब-ए-चश्‍म बचा रखिए।
मौत भी आ जाएगी जिस रोज़ आना होगा उसे
अभी ज़रा दर्द-ए-जीस्‍त सहने का हौसला रखिए।